गुरुवार, 22 सितंबर 2011

' मोहब्बत में मेरी तन्हाइयों के हैं कई उन्वान :तेरा आना /तेरा मिलना /तेरा उठना /तेरा जाना...''[ फ़िराक़ ]

बोल कि लब आज़ाद हैं तेरेबोल ज़बाँ अब तक तेरी हैतेरा सुतवाँ जिस्म है तेराबोल कि जाँ अब तक् तेरी हैदेख के आहंगर की दुकाँ में... तुंद हैं शोले सुर्ख़ है आहनखुलने लगे क़ुफ़्फ़लों के दहानेफैला हर एक ज़न्जीर का दामनबोल ये थोड़ा वक़्त बहोत हैजिस्म-ओ-ज़बाँ की मौत से पहलेबोल कि सच ज़िंदा है अब तकबोल जो कुछ कहने है कह ले- फ़ैज़

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